प्रेरणादायक कथा : सेठ और यमराज ।

प्रेरणादायक कथा(Prernadayak katha) : यमराज और सेठ । 

धनीलाल सेठ जी की गिनती नगर के सबसे रईस लोगों में होती थी। बड़ी दुकानें, जमीनें, गोदाम, बाजारों में कर्ज देने का काम — हर चीज में उनका बोलबाला था। लेकिन सेठ जी जितने धनवान थे, उतने ही भाग्यवान भी थे ।

“कैसे?” क्योंकि उनकी यमराज से दोस्ती हो गई थी। वही यमराज — मृत्यु के देवता।

कहते हैं, एक बार सेठ ने बड़ी धर्मशाला बनवाई थी और उसमें एक भूखे साधु को भोजन करवाया। वो साधु कोई और नहीं, स्वयं यमराज थे, जो किसी भेष में आए थे। उस दिन के बाद से यमराज और सेठ की गहरी दोस्ती हो गई।

यमराज और सेठ का मेहमानी । 

अब आए दिन यमराज कभी दोपहर में, कभी रात को सेठ जी के घर आ जाते। दोनों साथ बैठते, बातें करते, हँसते मजाक करते । यमराज खुद चाय मांगते और सेठ उन्हें अपने हाथों से नाश्ता परोसते।

धीरे-धीरे यह दोस्ती इतनी गाढ़ी हो गई कि सेठ जी पूरी तरह निडर हो गए और अपना बोलबाला ओर मजबूत कर लिए।

उन्हें लगने लगा — “जब मौत का देवता ही मेरा दोस्त है, तो अब डर किस बात का ?”

अब वह पूरी तरह व्यापार, धन, जायदाद और संसार के चक्कर में डूब गए। दिन-रात रुपये कमाने में लगे रहते। जमीन के सौदे, शेयर के दांव, रिश्तेदारों के झगड़े, कोर्ट के केस — गाँव मुहल्ले के झगड़े सब खुद ही संभालते थे।

बेटे-बेटियों, पोते-पोतियों तक के फैसले वो खुद लेते। “किसी पर भरोसा नहीं, सब मैं ही देखूंगा।” — यही उनका मंत्र था।

वो मान बैठे थे कि यमराज मेरी तरफ देखेगा भी नहीं… दोस्त जो है!

यमराज के द्वारा प्राण लेने का समय । 

एक दिन… अचानक रात को यमराज आ धमके। सेठ जी बिस्तर पर थे, आँखें मूंदे लेटे थे कि यमराज प्रकट हुए।

यमराज (गंभीर स्वर में):

“दोस्त, चलो। समय हो गया है।”

सेठ जम्हाई लेते हुए बोले — “कहाँ चलें दोस्त? अभी तो बहुत रात है। जहां भी जाना होगा , सुबह चाय पीकर चलते हैं।”

यमराज – नहीं दोस्त, अब सुबह नहीं आएगी। आज तुम्हारा पृथ्वी लोक में अंतिम समय है। तुम्हारी मृत्यु का समय आ चुका है। अब चलना होगा — यमलोक की ओर।”

सेठ जी एकदम घबरा गए और  बड़बड़ाते हुए “क्या? ये क्या कह रहे हो दोस्त? ये तो धोखा है! अचानक प्राण ले जाओगे? कम से कम दोस्ती का तो लिहाज रखो । इतनी बार हमारे घर खाए हो, पान खाए हो, चाय नाश्ता किए हो और आज…?”

यमराज शांत रहे !

सेठ बोलते रहे — हमने तो सोचा भी नहीं था कि आप ऐसे निकल जाएंगे और हमें धोखा देंगे , वह दोस्ती का कई सारे वास्ता देने लगे । सेठ जिद्द पर आ गए और कहने लगे नहीं दोस्त ये नाइंसाफी है , मै आपके लिए क्या सब न किया ,  मै नहीं जाने वाला हूँ।

यमराज – अभी हम कुछ सुनने वाले नहीं है , दोस्ती अपनी जगह और कर्तव्य अपनी जगह।

सेठ : ठीक है लेकिन  कम – से – कम “मुझे पहले बता दिया तो होता , जो भी काम धंधा है उसे  तो  सुलझा लेता।

जमीन के कागज़ बेटे को नहीं मालूम। दुकान का हिसाब पोते को नहीं आता। लाखों रुपये बाजार में फंसे हैं। सब कुछ डूब जाएगा! कम से कम 10 दिन का समय दे दो दोस्त…”

यमराज (थोड़ा सख्त होकर):

“सेठ जी, आप मुझे दोष दे रहे हैं? मैंने आपको चार बार चेताया था। लेकिन आपको याद रहे तब तो।

सेठ – चार बताया कब ?  , यमराज होकर झूठ बोलते हो।

यमराज – मै झूठ बोलता हूं , तो अब सुनो गिनती कराता हू।

यमराज की चेतावनियाँ:

पहली बार: जब तुम्हारी शादी हुई, बच्चे हुए और तुम गृहस्थ जीवन में रच-बस गए, तब समझ जाना चाहिए था कि आधा जीवन बीत चुका है।

दूसरी चेतावनी :  दूसरी बार: जब बेटे की शादी की, पोते हुए, तुम्हारी दाढ़ी-मूंछ सफेद होने लगी, बाल झड़ने लगे — तब भी संकेत साफ था।

 

तीसरी चेतावनी :  तीसरी बार: जब बार-बार बीमार पड़ने लगे, दवाओं पर जीने लगे, डंडे का सहारा लेना पड़ा, चेहरा झुर्रियों से भर गया — ये सब चेतावनी नहीं थी क्या?

 

चौथी बार: जब तुम चलने में लाचार हो गए, आँखों से ठीक से देख नहीं सकते, खाना कम हो गया, बोलना सुस्त पड़ गया — फिर भी माया में डूबे रहे और कहते हो कि मैंने नहीं बताया?

 

सेठ जी अब निःशब्द थे।

बोले —”ठीक है, अब कम से कम सबको जगा दूँ, आख़िरी बार बात कर लूँ…

यमराज: “अब समय नहीं बचा। तुम्हारे प्राणवायु का अंतिम क्षण आ चुका है।

चलो मेरे साथ…” और इतना कहकर यमराज सेठ के प्राण ले जाते हैं। बेटे, बहू, पोते — सब नींद में सोते रह जाते हैं। किसी को कुछ कहने का मौका भी नहीं मिला और न देखने का मौका मिला।

सीख (Moral):

मृत्यु अचानक नहीं आती — वह संकेत देती है।लेकिन जो व्यक्ति माया, मोह और मोहभरी व्यस्तता में उलझा रहता है, वो उन संकेतों को देख ही नहीं पाता।

मौत से पहले जीना सीखो।

मोह से पहले मो ह-मुक्ति सीखो। और जीवन रहते अपनों से रिश्ते जोड़ो — क्योंकि जब यमराज आता है, तब समय नहीं देता।

 

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