मुख्यमंत्री बनने के घरेलू नुस्खे – व्यंग्य साहित्य।
यह व्यंग्यात्मक लेख हमारे लोकतंत्र की उस हकीकत को उजागर करता है जिसे हम हर चुनाव में देखते हैं, लेकिन अक्सर अनदेखा कर देते हैं। मुख्यमंत्री बनने के नाम पर कैसे नाटक, अभिनय, जातिवाद, गठबंधन की नौटंकी और भावनाओं का शोषण होता है।
लेख में बताए गए “घरेलू नुस्खे” कोई मज़ाक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति के वो फॉर्मूले हैं, जो सत्ता की भूख में बार-बार इस्तेमाल होते हैं — कभी पत्नी को आगे कर, कभी जात-पात का खेल खेलकर, तो कभी विकास के नाम पर सिर्फ सपना बेचते हैं।
यह लेख न किसी पार्टी के पक्ष में है, न विरोध में — बल्कि राजनीति की उस छाया को दर्शाता है जो आज हर राज्य, हर मंच और हर पोस्टर पर मौजूद है।
सावधान! ये नुस्खे आयुर्वेदिक नहीं, पूर्णतः राजनीतिक हैं। इन्हें घर में ट्राय न करें, वरना मोहल्ले का वार्ड चुनाव भी हार सकते हैं।
राजनीति : आप मुख्यमंत्री जरूर बनेंगे ।
✅पहला नुस्खे : घरवाली को आगे करो और खुद भाव खाओ।
यदि आप राजनीति में बार-बार असफल हो चुके हैं, झूठ बोल-बोलकर ज़ुबान में छाले पड़ चुके हैं, जनता के सामने हाथ जोड़ते-जोड़ते कंधा दुखने लगा है, जनसभा में लोग अब सिर्फ जूते नहीं, बल्कि पुराने चप्पल भी फेंकने लगे हैं, और जेल भी एक-दो बार दर्शन कर चुके हैं — तो बिल्कुल भी निराश न हों। अब वक्त है, राजनीति में “घरेलू नीति” अपनाने का।
इस नीति में पत्नी को आगे करिए और खुद पीछे से चादर ओढ़कर कहिए — “हम तो संत आदमी हैं, अब घरवाली राज्य संभालेगी।” जनता यही मानेगी कि आप त्यागी हैं, सिर्फ मानव कल्याण के लिए जी रहे है और अब मेरे पत्नी आपकी विरासत को आगे बढ़ाएगी। जनता को एकदम इमोशनल कर दीजिए। ऐसे में जनता आपके सभी बुरे कर्मों को भूलकर आपके पत्नी को मंत्री बना देंगे , मतलब एक प्रकार से आपके ही हाथों में सत्ता आ जायेंगें।
✅दूसरा नुस्खे : बस कैमरा के सामने पसीना बहाईए ।
अगर जनता पूछे कि आपने क्या किया, तो काम दिखाने की जरूरत नहीं — बस कैमरे से “करता हुआ दिखना” है। सबसे पहले किसी सूख चुके खेत में जाइए, मिट्टी उठाइए, हाथ में दरांती पकड़िए और दो बार झुककर फोटो खिंचवाइए — जैसे गेहूं नहीं, वोट काट रहे हों। फिर किसी मजदूर के सिर से ईंट लीजिए, एक हाथ में तसला उठाइए और दूसरे हाथ से कमर दबाइए — ताकि जनता को लगे कि आप सच में “धरतीपुत्र” हैं। फिर किसी कच्चे घर में घुस जाइए, वहां बैठकर दाल-चावल खाइए (भले ही बाद में एंटीबायोटिक लेनी पड़े), लेकिन फोटो ऐसी होनी चाहिए कि लगे — “नेता गरीब के घर नहीं, दिल में उतर गया।”
अब अगला सीन — किसी गाँव के स्कूल में जाकर बच्चों को कॉपी बाँटिए, लेकिन बाँटने से पहले तीन कैमरा एंगल चेक कर लीजिए। फिर सड़क किनारे झाडुलगाइए, तालाब में पैर डालिए, किसी बीमार के बगल में उदास चेहरा बनाकर खड़े हो जाइए, और सब जगह एक ही कैप्शन लगाइए — “हम सिर्फ सत्ता नहीं, संवेदना लाना चाहते हैं।
वीडियो में कभी-कभी आँखों में आँसू लाने की कोशिश कीजिए, या किसी बच्चे को गोद में लेकर मुस्कराइए — ताकि जनता को लगे कि आप नेता नहीं, मसीहा हैं। फिर इस पूरे नाटक को फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और WhatsApp पर ऐसे वायरल कीजिए कि असली काम करने वालों को लगे — “हमने कुछ किया ही नहीं!” बस इतना याद रखिए — खेत में काम मत कीजिए, फोटो खिंचाइए; हल मत चलाइए, “हल्ला” मचाइए। इस प्रकार जनता आपको वोट आवश्य देंगें और आप मंत्री बन सकते है।
तीसरा नुस्खा: हर पोस्टर पर अपना मुंह चिपकाओ!
नेता जी! अगर वाकई मुख्यमंत्री बनने का इरादा है, तो कोई योजना बनाओ या न बनाओ, अपना चेहरा हर सरकारी योजना में चिपकाना शुरू कर दीजिए। हेंडपंप खुदवाएं या शौचालय बनवाएं, दवाई बाँटें या राशन — जनता को क्या मिला, ये बात बाद में पूछी जाएगी… पहले पूछा जाएगा कि “फोटो में कौन था?” इसलिए हर सरकारी बैनर, राशन कार्ड, एंबुलेंस, स्कूल बिल्डिंग और यहाँ तक कि खिचड़ी के डिब्बे तक में अपनी हँसती हुई तस्वीर लगाइए। भाव ऐसा होना चाहिए कि मानो आप खुद खेत जोतकर राशन बोकर लाए हों।
कोई भी योजनाएं दूसरे सरकार भले ही लाया हो , बस आप आप अपना मुस्कुराता हुआ चेहरा उस पर चिपका दीजिए। लोगों को लगेगा कि सब कुछ उन्होंने ने ही किया है। मंत्री वही बनता है जिसका चेहरा राशन कार्ड से लेकर बिजली मीटर तक पर छपा हो, और जनता को लगे — “योजना भले आधी हो, पर नेता पूरे फोटोजेनिक हैं!
✅ चौथा नुस्खा: गठबंधन बनाओ, फिर टाइम देखकर धोखा दो ।
यही राजनीति का व्रत है! नेता जी! अगर आपको मुख्यमंत्री बनना है और आपके पास खुद की पार्टी में नंबर पूरे नहीं हैं,तो घबराइए मत! बस किसी भावुक सी दिखने वाली पार्टी के साथ गठबंधन कर लीजिए। प्रेस कॉन्फ्रेंस करिए, दोनों हाथ जोड़कर कहिए – “हमारी विचारधारा एक है, हम जनता के लिए साथ आए हैं!
अब कुछ महीने चुप रहिए, थोड़ा-बहुत काम का दिखावा कीजिए, और जैसे ही कुर्सी डगमगाने लगे या आपको लगे कि अब दूसरा दल कमजोर हो गया है —एक जोरदार प्रेस कॉन्फ्रेंस कीजिए और कहिए कि “हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुँची है! हमें अपमानित किया गया है! हमारी आत्मा अब और नहीं सह सकती!” और फिर बिना समय गँवाए तुरंत किसी और पार्टी से हाथ मिला लीजिए — चाहे कल तक आप उन्हें “गुंडों की पार्टी” कहते थे। फिर क्या?आप फिर से मुख्यमंत्री बन जाएँगे —और जनता को लगेगा कि “वाह! क्या तेज तर्रार नेता है!”
याद रखिए, गठबंधन में “भरोसा” नहीं होना चाहिए, बल्कि “Backup Plan” होना चाहिए। जिससे ज़रूरत पड़ते ही रिश्ता बदल सकें — क्योंकि राजनीति में विचारधारा से नहीं, कुर्सीधारा से चलना होता है।
“नेता वही सफल है, जो दिन में दो बार दल बदल ले और हर बार जनता को लगे — ‘इस बार वो सच्चा है।’”
पांचवां नुस्खा: विरोधी चाहे कुछ भी बोले ,आप उसमें “खतरा” निकालिए ।
राजनीति में आजकल बात काटने की कला सबसे ज़रूरी है। यहाँ सही-गलत की बहस नहीं होती, बल्कि जो बात “सबसे ज़्यादा तोड़ी-मरोड़ी” जा सकती है, वही वायरल होती है।
अब चाहे विपक्ष कुछ भी बोले — उसे ऐसा घुमा दो कि जनता को लगे “देश संकट में है!”
विपक्ष बोले – “दूध सर्वोत्तम आहार है।” तो आप कहिए – अगर दूध को समय पर न गर्म किया जाए तो वह बासी हो जाता है। बासी दूध फट जाता है और क्या आप चाहते है कि फटा हुआ दूध खाए “नहीं न” दूसरी बात आप सभी जानते है कि दूध से दही बनता है और दही खट्टा होता है , खट्टा खाने से गैस, एसिडिटी, उल्टी, दस्त – यहाँ तक कि मृत्यु तक हो सकती है। यानी कि विपक्षी पार्टी आप सब को बीमार करना चाहते हैं!” ऐसे बोलना है कि जनता तालिया पीटता रह जाए।
यदि विपक्ष बोले – “पेड़ लगाइए, पर्यावरण बचाइए।” आप उत्तर दीजिए – भाइयों और बहनों जैसे कि हमारे प्रतिद्वंद्वी पेड़ लगाने की बात करते है लेकिन उसे ये पता नहीं कि “पेड़ से सांप भी लटकते हैं! और सांप के काटने से मासूमों की जान जा सकती है , क्या आप ऐसा चाहते है कि किसी की जान सांप काटने से जाए ? यह बात सही है कि पेड़ छाया देता है, लेकिन अंधकार भी वहीं से शुरू होता है। यानी येलोग देश को अंधेरे में धकेलना चाहते हैं।”
यदि विपक्ष बोले – “शांति ज़रूरी है, सबको प्रेम से रहना चाहिए।” तो आप पलटकर बोलिए – “शांति तो कब्रिस्तान में होती है! रही प्रेम की बात तो यह बहुत घातक होती है। यकीन नहीं होता तो , रावण के बारे में जानिए जो प्रेम के कारण ही माता सीता का हरण किए थे। अब देश को प्रेम नहीं पराक्रम चाहिए। इसी तरह विपक्ष के हर बातों में उंगली करना है , उसे किसी भी तरीका से गलत साबित करना है। इस प्रकार आप जनता आपके बातों में आ सकते है।
छठा नुस्खा: जात-पात का अचार लगाइए ।
अगर आपको राजनीति में काम नहीं सूझ रहा है, वादे पुराने पड़ चुके हैं, और भाषण में अब जनता उबासी लेने लगी है — तो टेंशन मत लीजिए। बस चुनावी मौसम में जात-पात का अचार निकाल लीजिए। आपको करना बस ये है — एक बड़ी जाति को पकड़िए, जो संख्या में सबसे ज्यादा हो और ठीकठाक हो।
फिर मंच पर जाइए और गला फाड़कर कहिए: “इस जाति को वर्षों से दबाया गया है! सिर्फ वोट बैंक समझा गया है , कभी कोई अधिकार नहीं मिला!” सिर्फ शोषण किया है। इसके अलावा जगह जगह पर जाति-विशेष की सभाएं कीजिए सड़क जमा कीजिए , धूप में पैदल चलिए , खुद को “समाज का बेटा” घोषित कीजिए, माला पहनिए, अपने आसपास पुराने राजा-महाराजाओं की तस्वीर लगाइए और बोलिए — “हमारा इतिहास गौरवशाली था, अब भविष्य हमारा होगा।” याद रखिए, विकास की बात बाद में कीजिए, पहले समाज को भावनात्मक गरमी दीजिए, ताकि लोगों को लगे कि आप ही उनके मसीहा हैं। इस प्रकार लोग आपको वोट जरूर देंगे।
सातवां नुस्खा: मीडिया को मोहरा बनाओ, सवाल पूछने वालों को देशद्रोही बताओ ।
अगर आपको मुख्यमंत्री बनना है, और आपके आसपास घोटाले, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, महँगाई जैसे मुद्दे का मंडरा रहे हैं — तो घबराइए मत! आपको कुछ सफाई देने की ज़रूरत नहीं। बस मीडिया को साध लीजिए। सबसे पहले 3–4 “अपने वाले पत्रकार” बनाइएजो आपको “जन-नायक”, “मिट्टी का बेटा”, “राष्ट्र का सेवक” कहें।
फिर जब भी कोई पत्रकार सच्चा सवाल पूछे — जैसे “सर, आपकी सरकार में स्कूल क्यों जर्जर हैं?”तो उसका माइक घुमाइए और कहिए —”आप देश की छवि खराब कर रहे हैं!”
फिर फेसबुक पर पोस्ट डालिए — “कुछ ताकतें देश को बदनाम कर रही हैं, हम जनता के बीच जाकर जवाब देंगे।” जवाब न दीजिए, बस “देशभक्ति” की दुहाई दीजिए।
अगर किसी पत्रकार ने ज्यादा छिले या कुरेदे , तो उसे “एंटी नेशनल”, “बिकाऊ” का तमगा दे दीजिए।
याद रखिए, मीडिया में बहस मुद्दे पर नहीं, “भाव” पर होनी चाहिए। अपने चैनलों से हर रात डिबेट कराइए — जहाँ एंकर चिल्ला-चिल्लाकर कहे कि “मुख्यमंत्री जी तो देश को बदलने आए हैं, और विपक्ष सिर्फ ट्विटर पर रोता है!”
इस नुस्खे की खास बात ये है कि आपको कोई काम नहीं करना पड़ता — बस दो पत्रकार, एक स्टूडियो और चार रटे-रटाए वाक्य!
असली नेता वो नहीं जो जवाब दे — बल्कि वो है जो सवाल पूछने वाले को ही गुनहगार बना दे! इस प्रकार जनता आपके पक्ष में आयेंगे और आप मंत्री बन सकते है।
आठवाँ नुस्खा: जनता को सपना दिखाओ, हकीकत से उसका ध्यान हटाओ!
नेता जी! अगर अब तक के सारे नुस्खे काम आ चुके हैं — घरवाली को आगे कर चुके हैं, गठबंधन बदल चुके हैं, जात-पात का अचार भी डाल चुके हैं, और सोशल मीडिया पर पोज़ देते-देते थक चुके हैं — तो अब वक़्त है सबसे शक्तिशाली ब्रह्मास्त्र निकालने का 👉 “सपना बेचिए!”
याद रखिए — जब आपके पास देने के लिए कुछ न हो, तो “दिखाने” के लिए सबसे बड़ा सपना पेश कीजिए।
ऐसा सपना जो सुनने में लगे कि अबकी बार जन्नत यहीं बसने वाली है।
कहिए — “हर नौजवान को नौकरी देंगे, वो भी मोबाइल ऐप से!”
“हर खेत तक ड्रोन से पानी पहुँचाएँगे!”“हर परिवार को बिना ब्याज के घर, गाड़ी और चाँद पर पिकनिक पैकेज मिलेगा!” जरूरी नहीं कि इन वादों का कोई सिर-पैर हो, बस जनता को लगना चाहिए कि आप “दूर की सोच रहे हैं!
जब जनता महँगाई पर बात करे, तो बोलिए । “हम 2047 का भारत बना रहे हैं! जब कोई बोले कि अभी रसोई में गैस नहीं है, तो कहिए — “हम अगले 25 सालों का ब्लूप्रिंट तैयार कर चुके हैं!” यानि भूखा आदमी रोटी माँगे तो आप उसे अंतरिक्ष स्टेशन का सपना दिखाइए।
बस इतना ध्यान रखिए — जनता अगर नींद में रहेगी,
तो वो वोट जागकर नहीं, भावुक होकर देगी। और आप मुख्यमंत्री बनेंगेजब तक लोग सपना देखते रहेंगे। नेता वही सफल है जो जनता को ऐसे सपने दिखाए, कि लोग जागने से डरें और वोट देने से पहले आँखें बंद करें।
🔚 निष्कर्ष(Conclusion)
इस लेख में बताए गए “मुख्यमंत्री बनने के घरेलू नुस्खे” कोई नुस्खे नहीं, बल्कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था की वो झलकियाँ हैं, जिन्हें जनता हर चुनाव में देखती है, महसूस करती है ।
यह लेख किसी व्यक्ति, पार्टी या समुदाय विशेष के विरोध में नहीं लिखा गया है। यह एक व्यंग्यात्मक प्रस्तुति है — जहाँ हास्य और कटाक्ष के ज़रिए लोकतंत्र के सच्चे और कड़वे अनुभवों को दर्शाया गया है।
हमारा उद्देश्य किसी का मजाक उड़ाना नहीं, बल्कि उस सच्चाई को व्यंग्य के लेंस से दिखाना है — जो हमारे सामने होते हुए भी हम हँसते-हँसते नजरअंदाज कर देते हैं। अगर इस लेख से किसी को सीख मिलती है, तो यह व्यंग्य सार्थक है और अगर हँसी के साथ थोड़ा सोच भी जगता है , तो यही लेख की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
Disclaimer (अस्वीकरण):
यह लेख केवल व्यंग्यात्मक उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें उल्लिखित “घरेलू नुस्खे” काल्पनिक और हास्य-व्यंग्य पर आधारित हैं, जिनका उद्देश्य केवल समाज और राजनीति की कुछ प्रवृत्तियों पर रचनात्मक टिप्पणी करना है।
इस लेख का मक़सद किसी व्यक्ति, पार्टी, जाति, समुदाय या संस्था को ठेस पहुँचाना नहीं है। इसमें व्यक्त विचार लेखक के निजी व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण हैं, जिन्हें हल्के-फुल्के अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है।
पाठकों से अनुरोध है कि इसे गंभीर राजनीतिक सलाह या वास्तविक रणनीति न समझें। यदि आपको किसी अंश से आपत्ति हो तो कृपया यह ध्यान रखें कि व्यंग्य साहित्य का उद्देश्य मनोरंजन और चिंतन दोनों होता है — न कि विवाद या दुर्भावना फैलाना।

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